बाबूराव विष्णु पराडकर वाक्य
उच्चारण: [ baaburaav visenu peraadekr ]
उदाहरण वाक्य
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- संपादकाचार्य बाबूराव विष्णु पराडकर ने कहा है, ``
- श्री बाबूराव विष्णु पराडकर जी के 125 वीं जयंती को देश भर में जीवंत करने का प्रयास किया गया है।
- संपादकाचार्य बाबूराव विष्णु पराडकर कहा करते थे-सच्चे भारतीय पत्रकार के लिए पत्रकारी केवल कला या जीविकोपार्जन का साधन-मात्र नहीं होनी चाहिये।
- जब गणेश शंकर विद्यार्थी, बाबूराव विष्णु पराडकर, माखनलाल चतुर्वेदी, अंबिकाप्रसाद वाजपेयी, इंद्र वाचस्पति जैसे दिग्गज संपादक हिंदी पत्रकारिता की अगुवाई कर रहे थे.
- इस किताब के दूसरे खंड से पता चलता है कि मार्च, 1920 से दैनिक आज का प्रकाशन वाराणसी से शुरू हुआ, जिसे बाबूराव विष्णु पराडकर ने अपने कुशल संपादन से प्रतिष्ठा दी।
- इन्हीं में एक प्रो. राममोहन पाठक बताते हैं कि अंग्रेजी शासन की दमनकारी तोप के मुकाबिल अपना हथियार यानी अपना अखबार लेकर खड़े साधनहीन-सुविधा विहीन संपादकों की कड़ी में एक नाम-बाबूराव विष्णु पराडकर ही काफी है।
- विदेशी शासन और संस्कृति के विरूद्ध पत्रकारिता की इस परंपरा को महामना मदनमोहन मालवीय, अमृतलाल चक्रवर्ती, प्रतापनारायण मिश्र, बालमुकुंद गुप्त, गणेशशंकर विद्यार्थी, बाबू श्रीप्रकाश, बाबूराव विष्णु पराडकर, माधवराव सप्रे, आचार्य नरेंद्र देव, जैसे महान संपादकों ने आगे बढ़ाया।
- इस परंपरा को बाद में महामना मदनमोहन मालवीय, अमृतलाल चक्रवर्ती, प्रतापनारायण मिश्र, बालमुकुंद गुप्त, गणेशशंकर विद्यार्थी, बाबू श्रीप्रकाश, बाबूराव विष्णु पराडकर, माधवराव सप्रे, आचार्य नरेंद्र देव, पांदेय बेचन शर्मा ‘ उग्र ', जैसे अनेक संपादकों और पत्रकारों ने जीवित रखा।
- वे महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के जनसंचार विभाग की ओर से पत्रकारिता के भीष्म पितामह कहे जाने वाले संपादकाचार्य बाबूराव विष्णु पराडकर की स्मृति पर्व पर 'मिशनरी पत्रकारिता: संदर्भ और प्रासंगिकता' विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन अवसर पर 'मीडिया: मिशन से व्यवसाय तक विशेष संदर्भ-पेड न्यूज' सत्र के दौरान बीज वक्तव्य देते हुए बोल रहे थे।
- वे रविवार को महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के जनसंचार विभाग की ओर से पत्रकारिता के भीष्म पितामह कहे जाने वाले संपादकाचार्य बाबूराव विष्णु पराडकर की स्मृति पर्व पर 'मिशनरी पत्रकारिता: संदर्भ और प्रासंगिकता' विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के तृतीय अकादमिक सत्र के दौरान 'इलेक्ट्रानिक मीडिया: वस्तुनिष्ठ प्रसारण की जिम्मेदारी' सत्र के दौरान बतौर मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे।
- सांस्कृतिक स्मृतिलोप के खिलाफ़ उनके पुनर्जीवन की चेष्टाएँ हैं, समकालीन जन-जीवन के साथ उनके संबंध का पुनः संधान हैं. प्रो. मैनेजर पाण्डेय ने बांग्ला पुस्तक “ देशेर कथा ” के लेखक सखाराम गणेश देउस्कर 1904 ई. के प्रकाशन के सौ साल पूरा होने पर उसके बाबूराव विष्णु पराडकर कृत हिंदी अनुवाद देश की बात को एक विस्तृत भूमिका के साथ फिर से प्रकाशित कराया.
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